# KAVYOTSAV--2
विषय-
#प्रेम
मेरा प्रेम
चहों ओर फैली हरियाली...
बदरा सोम बरसाए।
अतुल छटा से अलंकृत धरती..
फूली नहीं समाए।
बारिश में जो अगन लगी है...
बुझती नहीं बुझाए।
तन का भीगा सूख भी जाए..
मन को कौन सुखाए।
बरस -बरस घनघोर घटाएं..
नदियों में मिल जाए।
सावन में यदा- कदा ही भीगूं...
यौवन रोज भिगाए।
उपवन भरे रसाल वृक्ष से..
कोयल तान सुनाएं।
पुरंदर संग देवांगनाएं झांके..
मन ही मन हर्षाएं।
लता वृक्ष से लिपट- लिपटकर..
अपना प्रेम जताएं।
किस बिंध मैं भी मिलूं पिया से..
कोई उपाय सुझाए।
भ्रमर करे रसपान कली का..
मन में काम जगाए।
मन मयूर रिम -झिम में नाचे
उनसे आलिंगन हो जाए।
बाली उमर का प्रेम है मेरा..
भूले नहीं भुलाए।
थम जा ए कजरारे बदरा
'सीमा' टूट न जाए।
सीमा शिवहरे "सुमन"
भोपाल मध्यप्रदेश