दर्द
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यह कैसी दर्द घुटन बेचैनी सी
मुझमें भर गयी है
मैं अचानक गहरी नींद से
चौंक गयी हूँ
प्रिय सीने में उठता दर्द
असह्य सा हो रहा है
मानो कुछ गरम गरम टपक सा
रहा है
मेरे जख्मी दिल का लहू है शायद
सुर्ख लाल
मैं अपनी पूरी ताकत लगा कर
चीख उठी हूँ
आओ प्रिय
लो थामो मेरा हाथ
और चलो खुली हवा में
मैं स्वांस नहीं ले पा रही हूँ
मैं तुम्हारे हाथ पर रखकर अपना हाथ
उस अनंत आकाश की परिक्रमा करें
अपने वक्ष से लगाकर प्रेम करें
कि स्वांस को स्वांस आये
ताकि यह धरती अपनी धुरी पर
निरंतर चलती रहे
समस्त ब्रह्मांड के सभी कार्य
नियमवत होते रहें
आओ चलें हम साथ साथ
यह पुकार सुनो
कहीं देर न हो जाये
सुनो प्रिय
आओ चलें !
seema असीम saxena

Hindi Poem by Seema Saxena : 111162694

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