#काव्योत्सव

अनंतकाल

सूरजमुखी युगों से सूरज को ही निहारती है
थकती नही है कोयल जाने किसे पुकारती है
चांद निकलता है जाने किसकी प्रतीक्षा में
सांझ किसकी प्रतीक्षा में हर एक क्षण गुजारती है

व्याकुल रश्मियां सूरज को छोड़ पेड़ों को थाम लेती हैं
न जाने ये चंचल बेसुध हवा किसका नाम लेती है ..
ये नदियां सदियों से बहती ,किससे मिलने जाती हैं
ये कलियाँ पंखुड़ियों को किसकी बात बताती हैं

क्या कभी सूर्य सूर्यमुखी का प्रेम समझ पायेगा
क्या कोयल की पुकार सुनकर कोई मिलने आएगा
क्या चांद अपनी प्रतीक्षा का फल कभी पायेगा
फूलों के न मुरझाने का भी दिन आएगा

कब थमेगा इनके प्रेमाश्रुओं का काफिला
कब खत्म होगा इनकी निराशाओं का सिलसिला
कब खत्म होगा इन समस्याओं का जंजाल
कब खत्म करेगे ईश्वर इस प्रतीक्षा का अनंतकाल

-कविता जयन्त

Hindi Poem by kavita jayant Srivastava : 111161994

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