#kavyotsav -2
मेरी कलम
क्यों न जाने लगे ऐसा,
कोई करे मेरा इंतज़ार -
चातक जैसे निरिक्षण करती
बारिश की झंकार।
मेरी कलम ढूँढ़े मुझे,
पाँत करे बेकरार -
हाथ बढ़ाए पी लिया
जैसे अमृत का पनसाल।
झलक गई मेरे गले से
कुछ बूंदों का फनकार-
चांदनी रात में बहगया
कुछ शब्दों का चमत्कार।
अमृत जैसे शब्दों को
कलम से जब उतारा,
जैसे दिव्यास्त्र से छूटा
तीरों का फव्वारा।
मौलिक, लता तेजेश्वर रेणुका