#kavyotsav -2
मेरी कलम

क्यों न जाने लगे ऐसा,
कोई करे मेरा इंतज़ार -
चातक जैसे निरिक्षण करती
बारिश की झंकार।
मेरी कलम ढूँढ़े मुझे,
पाँत करे बेकरार -
हाथ बढ़ाए पी लिया
जैसे अमृत का पनसाल।
झलक गई मेरे गले से
कुछ बूंदों का फनकार-
चांदनी रात में बहगया
कुछ शब्दों का चमत्कार।
अमृत जैसे शब्दों को
कलम से जब उतारा,
जैसे दिव्यास्त्र से छूटा
तीरों का फव्वारा।

मौलिक, लता तेजेश्वर रेणुका

Hindi Poem by Lata Tejeswar renuka : 111161307

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