#kavyotsav_2
मेरा जीत ही मेरा हार बन गया

आँखों में भविष्य का कुछ सपना सजाया था
उन सपनों के लिये दिन क्या रात भी गवांया था
पल हरपल जिया उसी के लिए ही जिया
जीत के शिखर पर पहुँच कर भी दुखी था
मेरे साथ की साथी की हार हो गयी थी
उसकी हार मेरे जीत को तार -तार कर गया

मेरा जीत ही आखिर मेरा हार बन गया

मंजिल में पग पग तू मेरे साथ चला था
तू मुझे मैं तुझे कही गहराई से समझा था
साथ पढ़ना ,बैठना और घूमना साथ था
गम और खुसी की बाते तेरा मेरे साथ था
अब तेरा हार मुझकों धीरे से गुनहगार कह रहा था
शायद मैं ही तेरे साथ छल का व्यापार कर गया

मेरा जीत ही आखिर मेरा हार बन गया

तेरी याद अब मज़रूह मुझे करता है
तेरे साथ होने का अब भी दिल मेरा दावा करता है
मेरी गलती थी अब आकर जो सजा तू दे
कुछ बोल मेरे दोस्त यूँ ना चुपचाप रह
सच,तेरी हार मेरे जीत को शर्मसार कर गया

मेरा जित ही आखिर मेरा हार बन गया

Hindi Poem by Dileep Kushwaha : 111160671

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