# काव्योत्सव 2

( स्त्रीविमर्श )

मत करो विलाप

ए स्त्रियों !

कि विलापने से

कांपती है धरती

दरकता है

आसमान भी


कि सुख और दुख

दो पाले हैं

ज़िन्दगी के

खेलने दो ना

उन्हें ही कबड्डी

आने दो दुखों को

सुख के पाले

टांग छुड़ा कर

भाग ही जाएंगे

अपने पाले

या दबोच

लिये जाएंगे

सुखों की भीड़ में


मत करो विलाप

ए स्त्रियों !

कि गरजने दो

बादलों को ही

बरसने दो

भिगोने दो

धरती को

कि जीवन और मृत्यु

के बीच

एक महीन रेखा ही तो है

मिटकर मोक्ष ही तो पाना है

फिर से जीवन में आना है

कि विलापने से पसरती है

नकारात्मक उर्जा

कि उसी विलाप को

बना लो

बाँध और झोंक दो जीवन में


मत करो विलाप

ए स्त्रियों !

कि विलापने से

नहीं बदलेगी जून तुम्हारी

कि मोड़ दो 

धाराओं को

अपने ही पक्ष में

बिखेर दो रंग अपने ही जीवन में

अपने आस-पास

उगा दो फूल

चुग लो कंकर

कि तुम्हारी कईं पीढियों

को एक भी कंकर

ना चुभ पाये

और फूलों

के रास्ते

रंग भरी

दुनिया में

कर जाएँ

प्रवेश


मत करो विलाप

ए स्त्रियों !

बहुत हुआ विलाप

व्यर्थ हैं आँसू

कि जाना है हमें

बहुत आगे

अपनी बनाई

दुनिया को

दिखाना है

दुनिया को

संवारना है

उन को भी

जो विलाप

के कगार पर

अब भी पड़ी है

बिलखते हुए

उठाना है

उन्हें कन्धे पकड़ कर

समझाना है

बुझाना है

और ले जाना है

रंगों भरी दुनिया में


मत करो विलाप

ए स्त्रियों !

संगीता सेठी

Hindi Poem by sangeeta sethi : 111160639
Dev choudhary 5 years ago

butifull lines for women

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now