स्वर्ण-चाँदी मणि जवाहर क्यों नहीं अब माँगती हैं?
पूछिये तो बेटियों से बेटियाँ क्या चाहती हैं............

जीव जीवांतक नहीं है सृष्टि की वरदान बेटी।
दो कुलों की स्वामिनी हर वंश का अभिमान बेटी॥
श्रेष्ठ लड़कौरी सुता बन इस जगत को तारती है।
जन्म देकर वीर सुत सीमा सुरक्षा माँगती है॥
कल्पना बन आत्मजा नित व्योम छूना जानती हैं॥
पूछिये तो बेटियों से बेटियाँ क्या चाहती हैं..............

था समय तब जानकी बन आप नतमस्तक रही क्यों?
कब? समय का चक्र बदला दामिनी बन झक रही क्यों?
एक भाई चाह रावण तुल्य प्रभु वरदान देना।
जो बहिन रक्षा करे भाई वही सम्मान देना॥
है अघी कामुक नहीं जो नाक कटवा भागती हैं।
पूछिए तो बेटियों से बेटियाँ क्या चाहती हैं...............

सीरिया गृह युद्ध में जब भाग नारी माँग करती।
चाह आईएसआई संघ, कर अवसान मरती॥
मत समझ कमजोर मुझको राष्ट्र को मैं आरती दूँ।
गर्भ से फौलाद आविर्भाव सुत माँ भारती दूँ॥
हाथ ले तलवार लक्ष्मी-बाई' बन रिपु मारती हैं।
पूछिये तो बेटियों से बेटियाँ क्या चाहती हैं............

अब सहन होता नहीं है नित पुरुष का चाल नव-नव।
शक्ति का अवतार ले तनु फार देगी जाल नव-नव॥
भूलना मत हर पुरुष में अर्धनारी शक्ति दात्री।
यदि स्वयं पर आ गयी तो जान ले गर्दन उड़ाती॥
छोड़ दो आजाद वे इतिहास नव दृग पालती हैं।
पूछिए तो बेटियों से बेटियाँ क्या चाहती हैं.............

©-राजन-सिंह

Hindi Poem by Rajan Singh : 111160135

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