#काव्योत्सव -2
पहाड़ जब चलें आते चौके में
छींकने लगते हैं छौंक की खुशबू से
और पिघलने लगते हैं
रोटी की तपन में-
जैसे तर्क नहीं टिकते
रसोई में जन्में बुद्धिजीवियों के
'तुम क्या जानो' के व्यंग्य सुनकर,
धुंध नहीं ठहरती
रसोई की दराजों में
घबराहट भरी चिपचिपाहट में
वो ढूंढ लेतीं हैं एग्ज़िट
चिमनी के रास्ते।
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#लता