#काव्योत्सव -२
वो एक लडकी हुआ करती थी जो सपनो मे अपनी दुनिया सजाया करती थी।

दुनिया की हकीकतो से थी अनजान युं तितलीयो से खेला करती थी।

ना था कभी डर कहीं गुम हो जाने का बस युं ही नई राह आज़माया करती थी।

खुश रहना उसकी फिदरत थी इसलिए ग़म से कोसो दुर रहा करती थी।

सपनो मे ढुंढा करती थी परींयो को फिर खुद ही परी बन जाने के ख्वाब सजाया करती थी।

प्यार भरा था उसकी आँखो मे और हाथो मे था जादु इसलिए हर बच्चे को दिवाना कर दिया करती थी।

मासुमियत से भरी साफ दिल की वो बेरहम इस दुनीया मे जिया करती थी,
इस उम्मीद से की हर इंसान नही होता इतना भी बुरा वो इंसानीयत की लौ जलाया करती थी।

वो एक लडकी थी जो सपनो मे अपनी दुनीया सजाया करती थी।---खुशी

Gujarati Poem by Khushi Bhinde : 111158100

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now