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विषय : भावनाप्रधान
शीर्षक : खिड़की
खिड़की,
पसन्द है मुझे।
खिड़की के पास रहना,
उसके पास बैठना,
और उससे झाँकना
अच्छा लगता है।
दीवारों के बीच बनी ये खिड़कियाँ,
आज़ादी का अहसास कराती,
दुनिया के रंगों को खुद में समेटती,
प्रत्यक्ष को दर्शाती,
हमें दुनिया से जोड़ती हैं।
चारदीवारी में ताज़गी भरती ये खिड़कियाँ,
कमरे को सूरज की रोशनी से रोशन करती,
चाँद की चाँदनी से शीतल करती हैं।
प्रकृति से जोड़ती ये खिड़कियाँ,
उम्मीदों से भरी हुई,
सपने दिखाती,
अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
सफ़र के दौरान भी
बस या ट्रेन में
खिड़की की तलाश रहती है,
जिससे इस हसीन दुनिया को देखा जा सके।
यात्रा को खूबसूरत बनाती,
ये खिड़कियाँ अच्छी लगती हैं।
ये खिड़कियाँ वो जादू रखती हैं,
जो आँखों की थकावट कम करती हैं,
कमरे को साँस देती,
ये खिड़कियाँ जरूरत लगती हैं।
हाँ, ये खिड़कियाँ
मुझे अच्छी लगती हैं।
- शशिकांत कुमार