तुम्हारी चुड़ियों की खनक से कभी सुबह होती थी
जब तुम चाय लिए हाथ में डांट कर मुझे जगाती थी

मैं बड़े नखरे करता उठने में जिससे हर रोज तुम परेशान होती थी,
मेरा दिन बड़ा अच्छा गुजरता, जब सुबह-सुबह तुम मुझसे लड़ती थी,

मैं देर लगाता ऑफ़िस के लिए तैयार होने में तुम आलसी बोलकर ताना मारती थी,
मुझे बोलने से रोककर नाश्ते का आदेश देते देखकर तुम्हें, मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी,

मैं सवाँरता खुद को आईने के सामने, तुम आकर मेरे बाल ठीक करती थी,
अपने पास बिठाकर नाश्ते के साथ दूसरी औरतों से दूर रहने की हिदायत देती थी,

मुझसे किसी की तारीफ़ सुनकर तुम्हें जलती देखकर मुझे मन में बहुत हँसी आती थी,
मुझ पर शक नहीं बस लोगों से डरती हो, हर रोज गले लगा कर प्यार का विश्वास दिलाती थी,

दिन में दस बार चाय से लेकर खाने तक हाल पूछना तुम्हारी रोज की आदत थी,
हर बार मुझे बच्चे की तरह समझाती इसलिए तुम कभी-कभी मुझे अखरती थी,

घर के लिए निकलते ही याद करता, आज मैडम की फरमाइश क्या थी,
घर का राशन खरीदकर घर आता, हमेशा तुम दरवाज़े पर खड़ी मिलती थी,

कुछ कमी जरूर रखता, जो तुम्हें खरीददारी सिखाने का बहाना देती थी,
चाय के साथ बहस के बहाने पास बिठाकर तुम्हें छेड़ने की आदत बन गई थी,

जब भी तुम चुप होने लगती, मेरी जुबाँ कोई नई शिकायत तलाश करती थी,
कितना अजीब पति मिला तुम्हें जिसको पत्नी से झगड़े बिना शाम उदास लगती थी,

तुम प्यार से खाना बनाकर मुझे आवाज़ लगाती हुई बड़ी प्यारी लगती थी,
नाटक करने पर अपने पास बिठाकर एक ही थाली में दोनों का खाना परोसती थी,

अब प्यार से दिन भर की सारी बातें हाथों में हाथ लेकर मुझे समझाती थी,
चाहें कितना भी लड़े हम बस तुम कभी दूर मत जाना, यहीं बोल कर रोज गले लगाती थी,

वो लम्हें बड़ी जल्दी गुजर गये जब हर सुख-दुःख में तुम हमेशा साथ रहती थी,
अब बुढ़ापे की दहलीज पर खड़े होकर याद आया तुम मेरा कितना ख्याल रखती थी,

हर मुसीबत में सीने से लगाकर माथे को चुम अपने आँचल में तुम सुलाती थी,
तोड़कर बंदिशें मिले फिर दूबारा हम जैसे पहले मोहब्बत की घटाए बरसती थी,

जिन्दगी में हर कदम पर बहुत से कर्ज़ उतारने के लिए साथ मिलकर तुम चलती थी,
जिन्दगी में कुछ मेहमान आये, जिनके लिए हर फ़र्ज निभाने में तुम बराबर साथ रहती थी,

सबकी ख्वाहिशें पूरी हो गई, चलो अब मुस्कुराओ जैसे पहले खिलखिलाती थी,
तुम्हारे लिए जीने का जुनून ख़त्म नहीं हुआ, बस तुम बोलो जैसे पहले हक जताती थी,

अपने अरमान जगाकर खुद को निखारों सवाँर कर जैसे पहले तुम सजती थी,
फिर से खिलकर मेरे साथ महकाओं जिन्दगी को जैसे पहले तुम चहकती थी,

उम्र के साथ हौसला नहीं गया जीने का, तुम बढ़ाओ हाथ जैसे पहले थाम लेती थी,
चलो आओ लौटकर वापस प्यार के उन पलों में जब जिन्दगी बहुत खुबसुरत लगती थी,
.........................#Varman_Garhwal
1-8-2016, #वर्मन_गढ़वाल
Last Time - 563

Hindi Romance by Varman Garhwal : 111151273

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