बेबसी, तन्हाई और अकेलापन, समजे
ये सब ही है इश्क़ की विरासत, समजे

अश्क़ पानी से बहेंगे तुम्हारे और सुनो
न कर सकोगे किसीसे शिकायत, समजे

वक़्त की तासीर बदलने की सोचना मत
ये बदल देता है सबकी सियासत, समजे

जहाँ मैं था आज कोई और हैं कल कोई
इसे ही कहते है लकीरें हुक़ूमत, समजे

हरा और भगवा रंग ही है और रंग ही है
इसे न घसीटो अहिले सियासत, समजे

मैं और तन्हाई बड़े ही खुश हैं दोनों ही
न चाहिए न चाहिए कोई हिदायत, समजे

अब नसीबी है मजबूर और खुदा भी तो
किस से क्यूँ मांगे इस से रिहायत समजे

जलना हैं आसान अकेले ही अकेले फीर
न मांगी न मांगेगे किसीसे भी राहत समजे

हिमांशु

Hindi Shayri by Himanshu Mecwan : 111144741

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