ये दरिया जो इतना उछलकूद कर रहा है
आस पास तेरे होने का वज़ूद भर रहा है

में क्या जाके मस्जिद मैं नमाज़ी अदा करूँ ?
खुदा भी तो आहें क्या खूब भर रहा हैं

लकीरों ने बांटे हैं दो मुल्क तो क्या हैं?
वहाँ चलता हैं पैसा यहाँ रुपैया खूब चल रहा है

पेड़, रास्ता और सड़के सभी की कसम
कोई मेरे होते हुए भी मुझे बे वजूद कर रहा है

मेरी आधी रिंग पर उठाती थी कभी फोन मेरा
अब नेटवर्क का मसला क्या खूब चल रहा है

हिमांशु

Hindi Shayri by Himanshu Mecwan : 111144738

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