*पहाड़ भी मरते हैं*

आप गए तब सोचती रह गयी
एक चट्टान ही तो दरकी रिश्तों की
अब देखती हूँ
वो सिर्फ एक चट्टान नहीं थी
वो तो एक सिलसिला सा बन गया
दरकती ढहती चट्टानों का

आप का होना नहीं था
सिर्फ एक दृढ़ चट्टान का होना
आप तो थे एक मेड़ की तरह
बाँधे रखा था छोटी बड़ी चट्टानों को
नहीं ये भी नहीं ....

आप का होना था
एक बाँध सरीखा
आड़ी तिरछी शांत चंचल फुहारों को
समेट कर दिशा दे दशा निर्धारित करते
उर्जवित करते निष्प्राण विचारों को

एक चट्टान के हटते ही
बिखर गया दुष्कर पहाड़
मैं बस यही कहती रह गयी
सच मैं देखती रह गयी
पहाड़ को भी यूँ टूक टूक मरते ... निवेदिता

Hindi Shayri by Nivedita Srivastava : 111139635
प्रियंका गुप्ता 5 years ago

कितनी मर्मस्पर्शी...पर फिर भी मन को शीतलता पहुँचाती हुई पंक्तियाँ...☺️

Nivedita Srivastava 5 years ago

आभार सुधा

Sudha Chaudhary 5 years ago

बहुत सुंदर

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