लघुकथा : दूसरा अवसर
अन्विता ,"माँ ये सब समान फेंक दूँ क्या सारा खराब और टूटा फूटा है ... "
माँ ,"नहीं बेटा सब ठीक हो जायेगा ... ये इस चप्पल में दूसरा बंध डलवा देंगे ,तब घर मे पहनने के काम आ जायेगी । पैन का हैंडल ही तो टूटा है ,कपड़े से पकड़ कर काम आएगा । अरे ये साड़ी तो मेरी माँ ने दी थी फट गई तो क्या हुआ ,उससे कुछ और बना लेंगे । अन्विता बेटा गृहस्थी सब समझ कर चलानी पड़ती है ,ऐसे ही कुछ भी फेंका नहीं जाता ।"
अन्विता ,"माँ यही तो मैं भी कहना चाहती हूँ ... भइया का शरीर शांत हुआ और भाभी को जीते जी ही मरना पड़ रहा है । जब इन निर्जीव वस्तुओं को फिर से उपयोगी बना सकती हैं आप तब जीती जागती भाभी को जीवन जीने का दूसरा अवसर क्यों नहीं मिल रहा ? माँ आप भाभी की शिक्षा पूरी करवाइए और उनकी पसंद का रंग उनके जीवन में फिर से भर दीजिये ।"
..... निवेदिता
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