एक नई सुबह होगी,
तू बस चलता जा
कलियों से फूल बन,
बस खिलता जा
मिट जाएंगे एक दिन
खुदवा खुद तुझे गिराने वाले
तू गिरके बस यूं ही पवन,
सम्भलता जा
मेहनत कर और,
कागज पर जज्बात बिखेर दे
नकली चेहरे से मिल,
और उन्हें पहचानता जा
कलम से तू भी,
तूफान ला सकता है
बस दर्द चीखकर,
लोगो को सुनाता जा
इश्क कर पन्नो से,
और कलम को माशूका बना
इन किताबो की दुनिया को बस,
ऐसे ही आजमाता जा
गिर गया तो दुबारा खड़ा हो,
और हार को जीत में,
तब्दील कराता जा
इन्ही कोशिश से अपनी,
मंजिल को पा लेगा एकदिन
बस यूँही अपनी तकदीर बनाता जा"
लेखक - पवन सिकरवार