वैसे तो सुकून ढूँढतें है।
उसके लिए खून ढूँढतें है।

दबा हुवा रखें है सदा,
अक्सर वो जुनून ढूँढतें है।

बनने से पेहेले साहब,
खुद का प्यून ढूँढतें है।

बच के निकला जाये
ऐसा कानून ढूँढतें है।

खो चुके है खुद ब खुद
बचपनका वो गुण ढूँढतें है।

'होश' संभाले रखना बस
हमलावर हूण ढूँढतें है।


श्रेयस त्रिवेदी

Gujarati Shayri by Shreyas Trivedi : 111065234

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now