क्यों ?
आखिर क्यों ?
आज ये शीतल चाँदनी
जला रही है मेरे बदन को
चुभो रही है मेरी आँखों को
जैसे
डाल दी हो
कोई रड़क इनमें
भर गया हो लावा कोई
क्यों
हो गई हैं इसकी
गर्म चमकती
सलाखों जैसी किरणें
मेरे बदन के आर-पार
और
भेद रही है मेरे अंतर्मन
का रोम-रोम
लाख कोशिश की
इसकी शीतलता को
महसूस करने की
पर
मेरी तो सभी संवेदनाएं
तुम ही ले गई हो अपने साथ
जला रही है
तभी
मुझे ये शीतल चाँदनी भी
बन गई है जो आग
काश
वो मेरी इस वेदना को
सुन ले
समझ ले
जान ले
काश........।

अंशुल पाल 'रण'
जीरकपुर,मोहाली(पंजाब)

English Shayri by Anshul Pal : 111061606

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