दो वक्त की रोटी कमाने चला हूं...

दो वक़्त की रोटी कमाने चला हूं,
अकेले हालात से लडने चला हूं ।
दो वक्त की....

केसे देख पाता में रोना बच्चो का,
भूख की तलप को मिटाने चला हूं।
दो वक्त की....

जलते चूल्हे पर चिल्लाता बरतन,
अकेलापन उसिका भरने चला हूं।
दो वक्त की....

लाचार ममता के निकलते ये आंसू,
मुस्कराहट में सारे बदलने चला हूं।
दो वक्त की....

बेबस बनाके छोड़ दिया किस्मतने,
उसी किस्मतको फिर हराने चला हूं।
दो वक्त की....

क्यों मांगू मदद गैरोसे, जो मेरे कहा!
में,अकेले हालात से लडने चला हूं ।
दो वक्त की....

मिलन लाड. वलसाड. किल्ला पारडी.
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Gujarati Shayri by Milan : 111058212
Milan 5 years ago

aateka@ thank you

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