लघुकथा— बेटी
मां ने बैचेनी से इधरउधर देखा. बेटा और बहू पास के कमरे में थे. मन हुआ कि बेटी से कह दे ,'' सुमन ! दो भाइयों के बीच बटी मां तूझे पहले जैसा वह सबकुछ नहीं दे पाउंगी, जैसा देना चाहती हूं.''
तभी सुमन की आवाज आई, '' मां ! कुछ नहीं दोगी ?''
'' नानी हमें भी.'' बच्चे मचल उठे.
मां ने चुपचाच आंख की कोर में निकल आए आंसू पौंछे और अपनी पुरानी पेटी में हाथ डाला. जहां बड़ी मुश्किल से बचाबचा कर रखे. 10—10 के 10 नोट पड़े थे. जो उस ने अपनी दवा के लिए रख छोड़े थे.
हाथ में भींच कर लाई. '' लो ! यह तुम्हारे लिए,'' मां ने बच्चों के सिर पर हाथ फेरा.
'' ओर मुझे !'' सुमन के कहते ही यह वाक्य मां के सीने में तीर की तरह धस गया.
मां ने कमरे की ओर चोर निगाहों से देख कर कहा, '' तूझे क्या दूं बेटी ?'' कहते हुए मां ने मुंह फेर लिया.
'' वही वाला सब से बड़ा उपहार.'' सुमन ने मां का मुंह अपनी ओर कर लिया.
मां के आंसू टपक पड़े. '' कौनसा ?''
'' आप का आशीर्वाद और आप का सानिध्य मां.'' कहते हुए सुमन मां से लिपट गई.
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दिनांक 21.10.2018
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
पोस्ट आफिस के पास रतनगढ़
जिला— नीमच—45822

Hindi Story by Omprakash Kshatriya : 111045114

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