#kavyotsav

● मेरी धड़कनें आहिस्ता धड़कने लगी थी

वो सजकर घर से निकलने लगी थी
दीवानों की दुनिया में आँधियाँ चलने लगी थी।

आईनों पर भी हुस्न का ख़ुमार चढ़ गया
जब से वो हस्ना संवरने लगी थी।

उनके कदमों ने क्या छूआ घर की दहलीज को
चांदनी भी आँगन में ठहरने लगी थी।

ज़रा सी क्या भीग गई उनकी चुनर बारिश में
ऋतुएँ अपने कपड़े बदलने लगी थी।

एक दफ़ा उन्होंने क्या देखा पलकें उठाकर
दिलों में तमन्नाएँ पलने लगी थी।

जब भी वो नज़र आए हँसते हुए
मेरे उपवन में खुशबु महकने लगी थी।

तेज होते सुना था इश्क़ में दिल की धड़कनों को
मेरी धड़कनें ज़रा आहिस्ता धड़कने लगी थी।

सवेरा आहें भरता था उनकी अंगड़ाई पर
रातें उनकी करवटों पर मचलने लगी थी।

Hindi Shayri by vinod kumar dave : 111035090

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now