#kavyotsav

रह की किश्तों में उलझी हुई हस्ती है
धूप में बारीश ने की मौका परस्ती है

गिरा दे वो बुंदे भिगा दे जिस्मो जान
हिल जाऐ पुर्जे जो लगे मौत सस्ती है

मत भेजना इन जीवों के जाल में
उतरी है जो इन्सानियत की मस्ती है

इधर का हूँ ही नही ना है मेरा ठिकाना
कुनबा है अलग मेरा जुदा मेरी बस्ती है

Hindi Shayri by Kedar manjare : 111032010

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