#kavyotsav
रह की किश्तों में उलझी हुई हस्ती है
धूप में बारीश ने की मौका परस्ती है
गिरा दे वो बुंदे भिगा दे जिस्मो जान
हिल जाऐ पुर्जे जो लगे मौत सस्ती है
मत भेजना इन जीवों के जाल में
उतरी है जो इन्सानियत की मस्ती है
इधर का हूँ ही नही ना है मेरा ठिकाना
कुनबा है अलग मेरा जुदा मेरी बस्ती है