* भडवे, मैं लोहार, यशवंत लोहार| *

अधिकारी: तुम्हारी ड्यूटी यह थी की उन्हें अदालत में पकड़कर पेश करना|

यशवंत: तो क्या होता? फिर शुरू होती वही कहानी| कुछ जेबें खाली होती, कुछ जेबें भर जाती| दो दिन में वो ज़मानत पर छूट जाते| तीन महीने के बाद FIR तैयार होती| फिर केस शुरू होता, चलते रहता, चलते रहता| फिर इलेक्शन आ जाते, जेल का गुंडा अंदर से चुनाव लड़ता, उसके गुंडे डरे हुए लोगों को और डराकर जबरजस्ती वोट लूंटते| जेल का गुंडा MLA बन जाता| वो खुश, आप खुश| किस्सा यही पर शुरू होता यही पर ख़तम| 

बेस्ट डायलोग: मुझे पता है मैं अंधो के शहर में आईने बेचता हूँ| लेकिन एक दिन तुम्हारी ये आँखे खोलूँगा और उस आईने में तुम्हारा चेहरा दिखाऊंगा|

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*अपना हीरो नाना*

जब घर में नया नया टीवी आया तब मम्मीयों को एकता कपूर भा गयी और अपने को नाना| कलमवाली बाई, ब्रिगेडियर साब, प्रलयनाथ गैंडास्वामी, खबरीलाल.. साला क्या बवाल मचा देते थे जी सिनेमा पर| 

हमने टीवी में डिफ़ॉल्ट जी सिनेमा लगा के रखा था| वाघले को देखकर हमारा मन हुआ था की हम भी पुलिस बन जाएँ| पुलिस बन्ने का सबसे पहला ख्याल लानेवाले नाना ही थे| वजूद में कृष्णन पहला क्रश बनी| कोहराम और सलाम बोम्बे पसंदीदा फिल्में| शागिर्द का तो क्या कहना और अब तक छप्पन का साधू, क्या धोया था सबको ! 

आपके आने से हमारी जवानी में रवानियत आ गई|

Hindi Story by Kandarp Patel : 111021115

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